रांची। अंडर-17 वर्ल्ड कप फुटबॉल टीम की संभावितों में शामिल गुमला की सुधा अंकिता तिर्की परिवार के साथ भूख से जंग लड़ रही हैं। लॉकडाउन ने ऐसी कमर तोड़ी है कि सुधा के परिवार को दो वक्त का भोजन मिलना मुश्किल हो गया है। स्थिति ऐसी बन गई है कि पेट भरने के लिए अब गांव में लोगों से मदद मांगनी पड़ रही है। कोई कभी एक किलो चावल दे देता है तो कोई कभी दाल। इसी तरह सुधा अपनी मां और छोटी बहन के साथ संघर्ष कर रही हैं।
लाइव हिन्दुस्तान के अनुसार सुधा अगले साल फरवरी में भारत में होने वाले अंडर 17 फीफा महिला वर्ल्ड कप फुटबॉल टीम के लिए इंडिया कैंप में हैं। हाल ही में टीम की ओर से टर्की से अभ्यास मैच खेलकर लौटी हैं। कोच और फुटबॉल संघ के जानकारों के अनुसार वह 18 सदस्यीय टीम में स्थान पाने की प्रबल दावेदार हैं। इस समय जहां उसे बैलेंस डाइट की जरूरत है। वहां भात-दाल मिलने पर भी आफत है। ऐसा ही रहा तो चमकने से पहले ही यह स्टार बुझ सकता है। इस मामले में गुमला फुटबॉल संघ के सचिव सागर उरांव का कहना है कि हमें जानकारी नहीं थी। उसे जल्द मदद पहुंचाई जाएगी।
कह दिया राशन नहीं मिलेगा : गुमला के चैनपुर प्रखंड के दानपुर गांव में रहनेवाली सुधा की मां ललिता दूसरे के घरों में काम कर दोनों बेटियों के सपनों को पूरा कर रही थीं, लेकिन लॉकडाउन के कारण काम बंद हो गया। ललिता तिर्की ने बताया कि उन्होंने कुछ दिन पहले राशन कार्ड के लिए ऑनलाइन आवेदन किया था। अप्रैल एक बाद 10 किलो चावल मिला। इस माह कह दिया गया कि राशन नहीं मिलेगा। कुछ दिन पहले सुधा दो घंटे का सफर करने अपने मामा के घर खोडहा गांव गई थीं, लेकिन मामा के घर की भी स्थिति ऐसी ही है। आलू और प्याज देकर मामा ने उसे विदा कर दिया।
स्कूल के फादर ने पढ़ाई में मदद की : सुधा तिर्की के पिता नहीं हैं। चितरपुर के खोडहा गांव में इनका परिवार रहता था। सुधा की मां ने बताया कि पति के निधन के बाद गांववालों ने काफी परेशान किया। हारकर वह गांव छोड़कर दोनों बच्चियों के साथ दानपुर आ गईं। यहां लोगों के घरों में काम कर अपने परिवार का गुजारा करने लगी। वह मिशनरी स्कूल के शिक्षकों के घर पर काम करती थीं, जहां उन्हें और दोनों बेटियों को खाना मिल जाता था। स्कूल के फादर ने छोटियों की पढ़ाई में मदद की। पिछले साल कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में जूनियर नेशनल चैंपियनशिप के दौरान सुधा का चयन इंडिया कैंप में हुआ था। --प्रवीण मिश्र